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देशप्रेमी संन्यासी
SUMMARY
संसार में अधिकतर लोग धन और सुख के पीछे भागते रहते हैं। पर कुछ संसार को माया का झंझट समझकर सव कुछ त्याग देते हैं और गरीबी में जीते हैं। स्वामी विवेकानन्द मातृभूमि को प्रेम करनेवाले सन्यासी थे । उनका व्यक्तित्व बहुत प्रभावशाली था । वे सुन्दर, ज्ञानी, प्रतिभाशाली, सरल और मधुरभाषी थे ।
1857 में स्वाधीनता की पहली लड़ाई लड़ी गई थी जो असफल रही। फलस्वरूप भारतबासी निराश और कर्म हीन हो गए । स्वामी विवेकानन्द ने अपनी ओजस्वी बाणी से देशबासियों को जगाया और उनके हृदय में देश के प्रति अभिमान का भाव भर दिया ।
एक बार अमेरिका में विश्वधर्म सभा हुई । भारत की ओर से स्वामीजी ने प्रभावशाली भाषण दिया । उन्होने भारत के धर्म, रीति-रिवाज, दर्शन के महत्त्व को समझाया । इंग्लैण्ड में एक साल रह कर वहाँ के विद्वानों को अपने विचारों से प्रभावित किया । वहाँ के लोगों ने माना कि ऊँचे विचारों में भारत अग्रणी है 1
स्वामीजी ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के नाम पर रामकृष्ण मिशन की स्थापना की । उनके शिष्य धर्म प्रचार और मानव-सेवा में लगे हैं। भारत के नाम में दुनियाँ में विख्यात करने वाला ऐसा दूसरा सन्यासी नहीं है । भारत को जगाकर उसे आजाद कराने में ऐसे सन्यासियों का बहुत योगदान है |
ଓଡ଼ିଆ ଭାଷାରେ ସାରାଂଶ :
ସଂସାରରେ ଅଧିକାଂଶ ଲୋକ ଧନ ଓ ସୁଖ ପଛରେ ପାଗଳ । କିନ୍ତୁ କେତେ ଲୋକ ସଂସାରକୁ ମାୟାର ଝଞ୍ଜଟ ମନେକରି ସର୍ବସ୍ଵ ତ୍ୟାଗ କରିଦିଅନ୍ତି ଓ ଦରିଦ୍ର ହୋଇ ଜୀବନଯାପନ କରନ୍ତି । ସ୍ଵାମୀ ବିବେକାନନ୍ଦ ମାତୃଭୂମିକୁ ପ୍ରେମ କରୁଥିବା ଏଭଳି ଏକ ସନ୍ନ୍ୟାସୀ ଥିଲେ । ତାଙ୍କର ବ୍ୟକ୍ତିତ୍ଵ ବହୁତ ପ୍ରଭାବପୂର୍ଣ୍ଣ ଥିଲା । ସେ ସୁନ୍ଦର, ଜ୍ଞାନୀ, ପ୍ରତିଭାଶାଳୀ, ସରଳ ଓ ମୃଦୁଭାଷୀ ଥିଲେ ।
1857 ଖ୍ରୀଷ୍ଟାବ୍ଦରେ ସ୍ୱାଧୀନତାର ପ୍ରଥମ ସଂଗ୍ରାମ ଅସଫଳ ହେବାରୁ ଭାରତବାସୀ ନିରାଶାରେ ଅକର୍ମଣ୍ୟ ହୋଇପଡ଼ିଲେ । ଏହି ସମୟରେ ସ୍ଵାମୀ ବିବେକାନନ୍ଦ ନିଜର ଓଜସ୍ବୀ ବାଣୀ ଦ୍ଵାରା ଦେଶବାସୀଙ୍କୁ ଜାଗ୍ରତ କଲେ ଓ ତାଙ୍କ ହୃଦୟରେ ଦେଶ ପାଇଁ ଅଭିମାନ ଭରିଦେଲେ ।
ଥରେ ଆମେରିକା ବିଶ୍ଵ ଧର୍ମସଭାର ଆୟୋଜନ ହେଲା । ଭାରତ ତରଫରୁ ସ୍ଵାମୀ ବିବେକାନନ୍ଦ ପ୍ରଭାବଶାଳୀ ଭାଷଣ ଦେଲେ । ସେ ଭାରତର ଧର୍ମ, ଚଳଣି ଓ ଦର୍ଶନର ଗୁରୁତ୍ଵକୁ ବୁଝେଇଲେ । ଇଂଲଣ୍ଡରେ ଏକବର୍ଷ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ରହି ସେଠାକାର ବିଦ୍ଵାନମାନଙ୍କୁ ନିଜର ଚିନ୍ତନ ଦ୍ଵାରା ପ୍ରଭାବିତ କଲେ । ସେଠାକାର ଲୋକମାନେ ମାନିଲେ ଭାରତ ଉଚ୍ଚ ଚିନ୍ତନରେ ଅଗ୍ରଣୀ ।
ସ୍ଵାମୀଜୀ ନିଜ ଗୁରୁ ରାମକୃଷ୍ଣ ପରମହଂସଙ୍କ ନାମରେ ରାମକୃଷ୍ଣ ମିଶନ୍ ସ୍ଥାପନା କଲେ । ତାଙ୍କର ଅନୁଗାମୀମାନେ ଧର୍ମ ପ୍ରଚାର ଓ ମାନବ-ସେବାରେ ଲାଗି ରହିଛନ୍ତି । ଭାରତର ନାମକୁ ସାରା ବିଶ୍ବରେ ବିଖ୍ୟାତ କରିଥିବା ସ୍ଵାମୀଜୀଙ୍କ ଭଳି ଅନ୍ୟ କେହି ସନ୍ନ୍ୟାସୀ ନୁହଁନ୍ତି | ଭାରତକୁ ଜାଗ୍ରତ କରି ସ୍ଵାଧୀନ କରାଇବାରେ ଏପରି ସନ୍ନ୍ୟାସୀମାନଙ୍କ ବହୁତ ଯୋଗଦାନ ।
अनुच्छेद - 1
सरलार्थ : संसार में अधिकतर लोग धन कमाने और सुख भोगने में लगे रहते हैं। पर कुछ लोग संसार को झूठा और झंझट समझकर घर-परिवार और सुख को त्याग देते हैं और गरीबी में जीते हैं । स्वामी विवेकानन्द मातृभूमि को बेहद प्यार करने बाले सन्यासी थे । वे देखने में सुन्दर ज्ञानवान, प्रतिभाशाली, सरल और मधुरभाषी थे ।
ଓଡ଼ିଆ ଭାବାର୍ଥ : ସଂସାରରେ ପ୍ରାୟ ଲୋକମାନେ ଧନ ଉପାର୍ଜନ ଓ ସୁଖ ଭୋଗିବାରେ ଲାଗିପଡ଼ି ରହିଛନ୍ତି । ଭାବି ନିଜର ଘର ପରିବାର ଓ ସୁଖକୁ ତ୍ୟାଗ କରି ଦରିଦ୍ରତାରେ ରୁହନ୍ତି । ବିବେକାନନ୍ଦ ଏପରି ଜଣେ ସନ୍ନ୍ୟାସୀ ଥିଲେ ଯିଏ ନିଜ ମାତୃଭୂମିକୁ ଅପାର କିନ୍ତୁ କେତେଲୋକ ସଂସାରକୁ ଏକ ଭ୍ରାନ୍ତି ଓ ଝଞ୍ଜଟ ଏପରି ଲୋକମାନଙ୍କୁ ସନ୍ନ୍ୟାସୀ କୁହାଯାଏ । ସ୍ଵାମୀ ପ୍ରେମ କରୁଥିଲେ । ସେ ଦେଖିବାକୁ ଅତି ସୁନ୍ଦର, ଜ୍ଞାନୀ, ପ୍ରତିଭାଶାଳୀ, ସରଳ ଓ ମଧୁରଭାଷୀ ଥିଲେ ।
अनुच्छेद-2
सरलार्थ : एक समय था जब गुलाम भारत में अंग्रेजों का शासन था । 1857 ई. में भारतवासियों ने आजादी की पहली लड़ाई लड़ी पर वे सफल नहीं हुए। भारतवासी निराशा से आलसी और कर्महीन हो गए / एैसे समय में स्वामी विवेकानन्द ने देश वासियों को जगाया- मेरे प्यारे देशवासियों । जागो ! आजादी जीवन का वरदान है । भारत मेरा जीवन, मेरे बचपन का पालना, यौवन का आनन्दलोक और बुढापे का बैकुण्ठ है। हर भारतीय मेरा भाई है । मुझे भारतीय होने का गर्व है ।
ଓଡ଼ିଆ ଭାବାର୍ଥ : ସମୟ ଥୁଲା ଯେତେବେଳେ ଭାରତରେ ଇଂରେଜ ଶାସନ ଥିଲା । 1857 ଖ୍ରୀଷ୍ଟାବ୍ଦରେ ଭାରତବାସୀ, ପ୍ରଥମ ସ୍ଵାଧୀନତା ସଂଗ୍ରାମ ଲଢ଼ିଲେ କିନ୍ତୁ ସଫଳ ହେଲେ ନାହିଁ । ଭାରତବାସୀ ଅଳସୁଆ ଓ କର୍ମହୀନ ହୋଇଗଲେ । ଏହି ସମୟରେ ସ୍ଵାମୀ ବିବେକାନନ୍ଦ ଦେଶବାସୀଙ୍କୁ କହିଲେ– ପ୍ରିୟ ଭାରତବାସୀ ! ଜାଗ୍ରତ ହୁଅ । ସ୍ଵାଧୀନତା ଜୀବନର ବରଦାନ । ଭାରତ ମୋ ଜୀବନ, ମୋ ବାଲ୍ୟକାଳର ଝୁଲଣା, ମୋ ଯୌବନର ଆନନ୍ଦାଲୋକ ଓ ମୋ ବାର୍ଦ୍ଧକ୍ୟର ବୈକୁଣ୍ଠ ।
अनुच्छेद-3
सरलार्थ : एक बार अमेरिका में विश्व धर्म सभा हुई। स्वामीजी ने वहाँ जाकर हृदयस्पर्शी भाषा में
भारत
के धर्म, रीति रिवाज, चिंतन, दर्शन आदि के महत्व को समझाया। उनके सुन्दर और अर्थपूर्ण अंग्रेजी भाषण ने सबका दिल जीत लिया। स्वामीजी ने इंगलैण्ड में अंग्रेज विद्वानों को प्रभावित किया। उन्होंने स्वीकार किया कि गरीब होते हुए भी भारत ऊँचे विचारों का धनी है ।
1.
ଓଡ଼ିଆ ଭାବାର୍ଥ : ଥରେ ଆମେରିକାରେ ବିଶ୍ବ ଧର୍ମସଭା ଆୟୋଜିତ ହେଲା । ସ୍ଵାମୀଜୀ ସେଇଠି ଯାଇ ହୃଦୟସ୍ପର୍ଶୀ ଭାଷାରେ ଭାରତର ଧର୍ମ, ପ୍ରଥା, ଚିନ୍ତନ, ଦର୍ଶନ ଆଦିର ମହତ୍ତ୍ଵକୁ ବୁଝେଇଲେ । ତାଙ୍କର ସୁନ୍ଦର ଓ ଅର୍ଥପୂର୍ଣ୍ଣ ଇଂରାଜୀ ଭାଷଣ ସମସ୍ତଙ୍କ ମନକୁ ମୋହିତ କରିଦେଲା । ସ୍ଵାମୀଜୀ ଇଂଲଣ୍ଡରେ ବିଦ୍ଵାନମାନଙ୍କୁ ପ୍ରଭାବିତ କଲେ । ସେମାନେ ସ୍ଵୀକାର କଲେ ଯେ ଭାରତ ଗରିବ ହେଲେ ମଧ୍ୟ ଉଚ୍ଚ ଚିନ୍ତନରେ ଅଗ୍ରଣୀ ।
अनुच्छेद - 4 स्वामीजी ने अपने ...
सरलार्थ : स्वामीजी के असंख्य शिष्य मानव-सेवा और धर्म प्रचार में लग गए। अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के नाम पर उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। इसकी अनेक संस्थाए आज भी जनता की सेवा में लगी हैं। भारत के नाम को संसार में प्रसिद्ध करनेवाला ऐसा दूसरा स्वामी नहीं है । भारत को जगाकर उसे आजाद कराने में ऐसे सन्यासियों का बहुत योगदान था ।
ଓଡ଼ିଆ ଭାବାର୍ଥ : ସ୍ଵାମୀଜୀଙ୍କର ଅସଂଖ୍ୟ ଅନୁଗାମୀ ମାନବ ସେବା ଓ ଧର୍ମ ପ୍ରଚାରରେ ଲାଗିପଡ଼ିଲେ । ନିଜ ଗୁରୁ ରାମକୃଷ୍ଣ ପରମହଂସଙ୍କ ନାମାନୁସାରେ ସ୍ଵାମୀଜୀ ରାମକୃଷ୍ଣ ମିଶନ ସ୍ଥାପନା କଲେ । ଆଜି ଏହାର ଅନେକ ସଂସ୍ଥା ଜନସେବା କରୁଛନ୍ତି । ଭାରତର ନାମକୁ ସାରା ବିଶ୍ବରେ ବିଖ୍ୟାତ କରିଥିବା ଏପରି ସନ୍ନ୍ୟାସୀ ଦୁର୍ଲଭ | ସେ ଭାରତକୁ ଜାଗ୍ରତ କରି ସ୍ବାଧୀନତା ଆଣିଥିଲେ |
Q&A प्रश्न और अभ्यास
1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों में दीजिए :
(क) हम संन्यासी किसे कहते हैं ?
उत्तर : जो लोग अपनी इच्छा से घर-परिवार छोड़ देते हैं, सुख के सारे साधनों को त्याग देते हैं, गरीबी में जीते है और संसार को माया का जंजाल समझते हैं, ऐसे लोगों को हम सन्यासी कहते हैं ।
(ख) विवेकानंद का व्यक्तित्व कैसा था ?
उत्तर : विवेकानन्द का व्यक्तित्व बहुत अच्छा था । वे देखने में बहुत सुन्दर थे। बड़ेज्ञानी, सरल, विनम्र, मधुरभाषी और प्रचण्ड प्रतिभाशाली थे ।
(ग) विवेकानंद ने देशवासियों को क्या कहकर ललकारा ?
उत्तर : विवेकानन्द ने कहा- "प्यारे भारतवासियों ! जागो ! आजादी जीवन का वरदान है। भारत मेरा जीवन, मेरे बचपन का पालना, मेरे यौवन का आनन्द लोक और बुढापे का बैकुण्ठ है। मुझे भारतीय होने पर गर्व है ।
(घ) अमेरीका की धर्मसभा में स्वामीजी ने अपने भाषण में किस बात को प्रतिपादित किया ?
उत्तर : अमेरिका की धर्मसभा में स्वामीजी ने अपने भाषण में भारत के धर्म, आचार-विचार, ऋषि-मुनियों के चिंतन और आध्यात्मिक दृष्टिकोण का महत्त्व प्रतिपादित किया ।
(ङ) स्वामीजी ने इंग्लैण्ड के लोगों को कैसे प्रभावित किया ?
उत्तर : स्वामीजी ने इंग्लैण्ड के लोगों को अपनी विद्वत्ता से प्रभावित किया। वे मान गए कि भारत में गरीबी भलेही हो, लेकिन वह ऊँचे विचारों और चिंतन के धनी हैं, अग्रणी है ।
(च) स्वामीजी ने अपनी अनुयायियों को किन-किन कामों में लगाया ?
उत्तर : स्वामीजी ने अपने असंख्य अनुयायियों को मानव-सेवा, ज्ञान तथा धर्म प्रचार में लगाया ।
(छ) 1857 के बाद हमारे देश के लोग किस स्थिति में थे ?
उत्तर : 1857 के बाद हमारे देश के लोग निराशा, आलस्य और कर्महीनता में डूबे हुए थे ।
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-एक वाक्य में दीजिए :
(क) भारत कब पराधीन था ?
उत्तर : सन 1947 ईस्वी से पहले कई सालों तक भारत पराधीन था ।
(ख) जीवन का वरदान क्या हैं ?
उत्तर : जीवन का बरदान स्वतन्त्रता है ।
(ग) अंग्रेज क्या मान गये ?
उत्तर : अंग्रेज मान गए कि भारत में गरीबी भले ही हो, लेकिन वह ऊँचे विचारों और चिंतन का धनी है, अग्रणी हैं ।
(घ) देश को आजाद करने में किनका योगदान रहा ?
उत्तर : देश को आजाद करने में स्वामी विवेकानन्द जैसे सन्यासियों का बड़ा योगदान रहा ।
(ङ) कौन रामकृष्ण परमहंस के उपयुक्त शिष्य थे ?
उत्तर : स्वामी विवेकानन्द रामकृष्ण परमहंस के उपयुक्त शिष्य थे ।
3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द / एक वाक्य में दीजिए :
(क) धर्म सभा कहाँ हो रही थी ?
उत्तर : धर्म सभा अमेरिका में हो रही थी ।
(ख) देशप्रेमी सन्यासी कौन हैं ?
उत्तर : स्वामी विवेकानन्द ।
(ग) स्वामीजी इंलैण्ड में कबतक रहे ?
उत्तर : स्वामीजी इंग्लैण्ड में एक साल तक रहे ।
(घ) स्वामीजी के अनुसार हमारा भरण पोषण कौन करता है ?
उत्तर : स्वामीजी के अनुसार भारत के देवता ही हमारा भरण पोषण करता है ।
(ङ) स्वामीजी के गुरु कौन थे ?
उत्तर : स्वामीजी के गुरु रामकृष्ण परमहंस थे ।
(च) सालों पहले भारत में किसका शासन चलता था ?
उत्तर : सालों पहले भारत में अंग्रेजों का शासन चालता था ।
(छ) स्वामीजी बूढ़ापे का बैकुण्ठ किसे मानते हैं ?
उत्तर : अपने देश भारत को ।
(ज) स्वामीजी के बचपन का हिण्डोला कौन था ?
उत्तर : भारत देश ।
(झ) प्रत्येक भारतीय स्वामीजी के लिए क्या था ?
उत्तर : प्रत्येक भारतीय स्वामीजी के लिए उनका भाई था ।
(ञ) स्वामीजी ने किसे जीवन का वरदान समझा ?
उत्तर : स्वामीजी ने स्वतन्त्रता को जीवन का वरदान समझा ।
भाषा- ज्ञान
1. निम्नलिखित शब्दों के लिंग बताइए :
वाणी, विद्वान, अंग्रेजी, दृष्टिकोण, आजादी, देश, सन्यासी, गरीबी, निराशा, आनन्द, बुढ़ापा
पुलिंग - विद्वान, दृष्टिकोण, देश, सन्यासी, आनन्द, बुढापा ।
स्त्रीलिंग - वाणी, अंग्रेजी, आजादी, गरीबी, निराशा ।
2. निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिए :
विद्वान, आजाद, साल, मानव, व्याकुल, इच्छा
(i) विद्वान - पंडित, तत्वज्ञ, शिक्षित
(ii) आजाद - स्वतन्त्र, स्वाधीन, मुक्त
(iii) साल - वर्ष, बरस, अब्द
(iv) मानव - मनुष्य, इनसान, आदमी
(v) व्याकुल - व्यग्र, परेशान, दुर्मन
(vi) इच्छा - चाह, आकांक्षा, लालसा
3.निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए :
(क) सालों पहले का बात है ।
(ख) रामकृष्ण परमहंस विवेकानंद का गुरु थे ।
(ग) देश में रामकृष्ण मिशन का अनेक संस्थाएँ हैं ।
(घ) गर्व में कहो की मैं भारतीय हूँ
(ङ) भारत मेरी जीवन है ।
उत्तर :
(क) सालों पहले की बात है ।
(ख) रामकृष्ण परमहंस विवेकानन्द के गुरु थे ।
(ग) देश में रामकृष्ण मिशन की अनेक संस्थाएँ हैं ।
(घ) गर्व से कहो कि मैं भारतीय हूँ ।
(ङ) भारत मेरा जीवन हैं ।
4. निम्नलिखित में से विशेषण पद छाँटकर लिखिए :
(क) मेरे प्यारे देश वासियों !
(ख) यहाँ अंग्रेजों का कड़ा शासन चलता था ।
(ग) भारत मेरे बचपन का हिंडोला है ।
(घ) मेरे यौवन का आनंद लोक है ।
(ङ) भारत मेरे बचपन का बैकुण्ठ है ।
उत्तर : (क) मेरे प्यारे, (ख) कड़ा, (ग) मेरे, (घ) आनंद, (ङ) मेरे ।
5.निम्नलिखित वाक्यों में विराम चिह्न लगाइए
(क) मेरे प्यारे देशवासियों उठो जागो ।
(ख) निराशा आलस्य और कर्म हीनता में डुबे हुए थे
(ग) उनके सुन्दर सरल अर्थपूर्ण अंग्रेजी भाषाण ने सब के दिलों को अभिभूत कर दिया
(घ) स्वामीजी ने असंख्य अनुयायियों को मानव सेवा ज्ञान तथा धर्म प्रचार में लगाया
उत्तर :
(क) “मेरे प्यारे देशवासियों! उठो, जागो !”
(ख) निराशा, आलस्य और कर्म-हीनता में डूबे हुए थे ।
(ग) उनके सुन्दर, सरल, अर्थपूर्ण भाषण ने सबके दिलों को अभिभूत कर दिया ।
(घ) स्वामीजी ने असंख्य अनुयायियों को मानव सेवा ज्ञान तथा धर्म प्रचार में लगाया ।
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